अक्सर सुना जाता है. आज के युवा राजनीति से दूर होते जा रहे है. उनकी राजनीतिक समझ विकसित नहीं है, लेकिन इस बार का पंचायत चुनाव खास है. जहां मठाधीशों का बोलवाला है, वहीँ पढ़े लिखे युवा भी भाग्य आज़माने से नहीं चूक रहे है. माना यह जाता है कि पंचायत चुनाव समीकरण पर आधारित है, लेकिन आज के युवा समीकरण से अलग विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाह रहे है. दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने वाली शालिनी शुक्ला भी इस बार पंचायत चुनाव में जोर-शोर से लगी हुई है. एमए तक कि पढ़ाई पूरी करने के बाद शालनी ने तय किया है कि अगर बदलाव लाना है. तो उसकी शुरुआत घर से ही करनी होगी. हमारे संवाददाता ने शालिनी शुक्ला से बात की.
चाहे वो व्यवस्था का परिवर्तन हो या विकास का. शालिनी का कहना है कि ‘पंचायत चुनाव का उद्देश्य यह था कि छोटे -छोटे समस्याओं को अपने स्तर पर सुलझाया जाए. जनभागीदारी तय हो ‘लोगों को अपने अधिकार के लिए लम्बी लड़ाई न लड़ना पड़े, इसलिए इसकी शुरुआत हुई, लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप बदल गया. ‘ समीकरण के आधार पर चुनाव लड़ा जाने लगा. विकास और सामज गौण हो गया. जब शालिनी से पूछा गया कि वो पढ़ाई लिखाई करके कही नौकरिया क्यों नहीं करती.
शालिनी उत्तर देते हुए मुस्कुराते हुए कहती है हमने एमए करने के बाद नौकरी भी की, लेकिन मुझे लगा मेरे नौकरी से सिर्फ और सिर्फ मेरा ही जीवन बदल सकता है. हम किसी के जीवन में चाह कर भी सुधार नहीं ला सकते हैं. इस लिए मुझे लगा कि मुझे अपने गांव से शुरुआत करनी चाहिए, जिससे बदलाव आ सके. विरोधी के सवाल पर वो कहती है कि मेरी लड़ाई व्यक्ति आधारित नहीं है, व्यवस्था की लड़ाई है. विकास की लडाई है. इसलिए विरोध या विरोधी कोई मायने नहीं रखते पर जनता का विश्वास महत्वपूर्ण है. जनता अब जागरूक है और उसकी का परिणाम हैं कि आज हम जन अदालत में आए हुए हैं.
पंचायत चुनाव ही क्यों?
शालिनी कहती है जैसा कि आप को मैंने कहा कि किसी भी बदलाव के लिए शुरुआत छोटे स्तर से करनी पड़ती है. यह मुश्किल जरूर है, लेकिन असंभव नहीं. बदलाव की बयार पंचायत से ही होकर गुजरती है. हमरा उद्देश्य सत्ता बदलना मात्र नहीं है विकास के व्यवस्था को बदलना भी है. इसलिए मैंने तय किया है कि ‘असौजी ‘ग्राम पंचायत के लिए में काम करूंगी. ये शुरुआत छोटी जरूर हो सकती है, लेकिन स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था में पंचायत चुनाव का अपना महत्व है.