दिल्ली (Delhi): बाम्बे हाईकोर्ट की जज पुष्पा गनेदीवाला हाल ही में अपने एक फैसले के कारण खूब सुर्खियों में रहीं. उन्होंने पोक्सो (POCSO) एक्ट के तहत एक केस की सुवनाई में आरोपी को यह तर्क देते हुए बरी कर दिया कि ‘स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट’नहीं हुआ था. इसके बाद देश में हर तरफ उनके इस फैसले की निंदा की गई. सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस फैसले पर रोक भी लगा दी. वहीं अब सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला की परमानेंट जज के रूप में पुष्टि को होल्ड पर रख दिया है.
जानकारी के मुताबिक कॉलेजियम ने 20 जनवरी को स्थायी न्यायाधीश के रूप में उनकी पुष्टि की सिफारिश की थी. वहीं बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों में विवादास्पद निर्णयों के बाद, एससी कोलेजियम ने अपनी सिफारिश को वापस ले लिया और इस प्रक्रिया पर रोक लगा दी. इस पर रोक लगाते हुए कहा गया है कि जज को ट्रेनिंग की जरूरत है.
आपको बता दें कि न्यायमूर्ति गनेदीवाल ने 19 जनवरी को पोक्सो कानून के तहत 39 वर्षीय एक व्यक्ति को 12 साल की बच्ची के यौन शोषण के मामले में बरी कर दिया. इस फैसले के पीछे उन्होंने तर्क दिया कि आरोपी और पीड़ित बच्ची के बीच ‘Skin to skin contact’नहीं हुआ. न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाल ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि ‘किसी नाबालिग को निर्वस्त्र किए बिना, उसके स्तन को छूना, यौन हमला नहीं कहा जा सकता.’ उनके इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए रोक लगा दी कि यह फैसला एक खतरनाक मिसाल बन सकता है.
गौरतलब है कि जस्टिस गनेदीवाला ने अपने एक अन्य फैसले में भी अजीबो-गरीब तर्क देकर एक आरोपी को बरी कर दिया था. उन्होंने कहा था कि पांच साल की नाबालिग का हाथ पकड़ना और उसके सामने पैंट की जिप खोलना पोक्सो के तहत यौन हमले के समान नहीं है बल्कि IPC की धारा 354 के तहत है. उनका यह फैसला भी काफी विवादों में आया था. गनेदीवाला के इन दोनों फैसलों के कारण ही उनको स्थायी न्यायाधीश बनाने की केंद्र को की गई सिफारिश को कथित रूप से वापस ले लिया गया है.